विकलांग लोगों को पर्यावरणीय, सामाजिक और संरचनात्मक दिक्कतों और समस्याओं का विभिन्न जटिल संदर्भों और विविध रूपों में सामना करना पड़ता है। मानवीय और अन्य आपातकालीन प्रतिक्रियाओं के दौरान इन बाधाओं के कारण उन्हें अत्यधिक नुकसान भी उठाना पड़ता है तथा उन्हें उपेक्षित और बहिष्कृत भी किया जाता है।1–3 यह स्थिति विशेष रूप से नेपाल और अन्य दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों सहित निम्न और मध्यम आय वाले देशों (low- and middle-income countries) में सामने आई है।4 विकलांग लोगों की जरूरतों, सामाजिक सोच और दुर्गम बुनियादी ढाँचे के बारे में सीमित जागरूकता आपातकालीन स्थितियों में उनके सामने आने वाली चुनौतियों में इजाफा कर सकती है। इसके अलावा, आपदा और आपातकालीन योजना विकलांगता को समावेशी बनाने के लिए बहुत कम तैयारी की गई है तथा योजना भी उसके अनुरूप नहीं है।3,5,6 इससे दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में मानवीय और सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थितियों के संदर्भ में विकलांगता की पड़ताल होती है। इसका फोकस नेपाल पर है लेकिन सिद्धांत सार्वभौमिक रूप से प्रासंगिक हैं और इन्हें किसी भी संदर्भ के लिए अपनाया जा सकता है। यह सरकार, सिविल सोसाइटी (नागरिक समाज) और मानवीय क्षेत्र के हितधारकों के लिए है। इसका उद्देश्य हितधारकों को यह बेहतर ढंग से समझने में सहायता करना है कि कैसे सामाजिक और सांस्कृतिक मानदंडों और प्रथाओं के साथ-साथ संरचनात्मक असमानताएँ आपात स्थिति में विकलांग लोगों के हाशिए पर ले जाने और बहिष्कार को बढ़ा देती हैं। यह संक्षिप्त विवरण विकलांगता-उत्तरदायी मानवीय और आपातकालीन योजना और हस्तक्षेप के लिए अच्छे अभ्यास के उदाहरण प्रस्तुत करता है। इससे विकलांग लोगों के और अधिक समावेशन की वकालत करने का लक्ष्य रखने वाले लोगों के लिए महत्वपूर्ण विचार भी प्राप्त होता है। यह संक्षिप्त विवरण शैक्षिक साहित्य तथा ओपन-सोर्स डेटा के साक्ष्य पर आधारित है। इसे ओबिन्द्र चंद (एच.ई.आर.डी. इंटरनेशनल, एसेक्स युनिवर्सिटी), केटी मूर (एंथ्रोलॉजिका) और स्टीफन थॉम्पसन (इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज (आई.डी.एस.)) द्वारा तैयार किया गया है तथा यह विवरण तबीथा ह्रीनिक (आई.डी.एस.) द्वारा समर्थित है। इस संक्षिप्त विवरण को कार्यरूप देने की जबावदारी एस.एस.एच.ए.पी. की है।