The presented research paper presents a comparative study of Dalit discourse in the stories of Sushila Takbhaure. From the analysis of Sushila Takbhaure ji's stories, it is known that Sushila Takbhaure ji's story is influenced by Ambedkarite ideology and presents a lively and poignant example of Dalit struggle. In this research paper, a review of Dalit movement, Dalit anger, and status of women has been presented.
साहित्य समाज का दर्पण माना जाता है। साहित्य समाज का दर्पण होने के कारण साहित्य के अंतर्गत समाज के हर वर्ग का वर्णन नजर आना स्वाभाविक है। भारतीय साहित्य में आदिकाल के साहित्य से लेकर हिंदी साहित्य तक दलित वर्ग का चित्रण व्यापक पैमाने में देखने को मिलता है । इस भारतीय समग्र साहित्य में अस्पृश्यता की पीड़ा, दलित नारी की समस्या और उनका शोषण आदि अन्यायओं के प्रति आक्रोश विद्रोह व्यक्त होता दिखायी देता है। प्रस्तुत शोध-पत्र में बुद्ध शरण हंस जी के कहानियों का समीक्षात्मक अध्ययन कर दलित साहित्य विकास यात्रा में उनके महत्वपूर्ण योगदान को सूचीबद्ध किया गया है। शब्द संकेतः अधम्, गरीब, दलित
प्राचीन काल से ही वर्ण व्यवस्था ने सामाजिक ताने बाने पर कुत्सित प्रहार किया है। आज के आधुनिक युग में जाति गत भेद भाव युवा मन में विद्रोह की भावना उत्पन्न की है। जिसका सजीव चित्रण हिन्दी दलित कहानीकार, डॉ. सुशीला टाकभौर, ओमप्रकाश वाल्मीकि जी की कहानियों में परिलक्षित होता है। प्रस्तुत शोध-पत्र में दशवें दशक की कहानियों में जातिगत भेद-भाव का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है, तथा दलित युवा शिक्षित सवर्ण युवाओं सम्मिलित आक्रोश की विवेचना कर इस निष्कर्ष को प्राप्त किया है कि जातिगत समरसता के लिये सामाजिक परिवर्तन हो रहा है परन्तु इसकी गति अभी सुस्त है, इसकी गति को तेज करने के लिये हिन्दी साहित्य के कलमकारो को और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है संकेतः विद्रोह, जातिप्रथा, दलित, सवर्ण,
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